आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra) या आदित्यहृदयम्, आदित्य (भगवन सूर्य देव) की स्तुति में वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड (काण्ड – 6) में वर्णित मंत्र हैं।
जब भगवन श्री राम, रावण से युद्ध के लिये रणक्षेत्र में आमने-सामने खड़े थे, उस समय अगस्त्य ऋषि ने श्री राम को सूर्य की स्तुति करने की सलाह देते हुए ये मंत्र कहे थें।
जब श्री राम रावण के विभिन्न योद्धाओं से लड़ते हुए थक चुके थें और फिर रावण के सम्मुख युद्ध के लिये तैयार थें, तब अगस्त्य ऋषि प्रकट हुए और उन्हें सूर्य की उपासना करने को यह स्तोत्र प्रदान किया। और कहते हैं कि सूर्य की उपासना आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ से कर के श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त किया।
आदित्यहृदयम् स्तोत्रम के भाग (Parts Of Aditya Hridaya Stotra)
आदित्यहृदयम् में कुल 30 श्लोक हैं जिनको 6 भागों में बांट सकते हैं:
भाग | श्लोक संख्या | वर्णन |
---|---|---|
1. | 1 से 2 | अगस्त्य ऋषि का राम के पास आना |
2. | 3 से 5 | अगस्त्य ऋषि आदित्यहृदयम् की महानता तथा इसके पाठ का माहात्म्य बताते हैं। |
3. | 6 से 15 | आदित्य को ‘सर्वदेवात्मक’ बताना। इनको सविता (जगत को उत्पन्न करने वाला), सूर्य (सर्वव्यापक), पूषा (पोषण करने वाले), भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज), शम्भू (कल्याण के उदगमस्थान), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), घनवृष्टि (घन वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले), सर्वतापन (सबको ताप देने वाले), सर्वभवोदभव (सबकी उत्पत्ति के कारण), विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले) आदि बताकर उनको नमस्कार किया गया है। |
4. | 16 से 20 | मन्त्र जप |
5. | 21 से 24 | आदित्य (भगवन सूर्य देव) का नमन |
6. | 25 से 30 | इस स्तोत्र के फलों का वर्णन, पाठ करने की विधि, राम द्वारा रणक्षेत्र में विजय प्राप्ति के आशीर्वाद के लिए भगवन सूर्य देव के आह्वान की विधि |
विनियोग और न्यास मंत्र (Aditya Hridaya Stotra Mantra)
आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करने से पहले भगवान सूर्य देव का ध्यान एवं नमस्कार साथ ही विनियोग और न्यास मंत्र का पाठ करने का विधान है लेकिन इसे करना अति आवश्यक नहीं है।
भगवान सूर्य का ध्यान
ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात
विनियोग
ॐ अस्य श्रीआदित्यहृदयस्तोत्रमन्त्रस्य श्रीअगस्त्यऋषिः ।
अनुष्टुप्छन्दः। श्रीआदित्यहृदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवताः ।
ॐ बीजम् । रश्मिमतेरिति शक्तिः । ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्री कीलकम् ।
निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।।
ऋष्यादिन्यास
ॐ अगस्त्यऋषये नमः शिरसि ।
अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे ।
आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि ।
ॐ बीजाय नमः गुह्ये ।
ॐ रश्मिमते शक्तये नमः पादयोः ।
ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्री कीलकाय नमः नाभौ ।
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
इति ऋष्यादिन्यासः ॥
करन्यास
ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ विवरवते अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि अंगन्यास
ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः।
ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा।
ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्।
ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।
इस प्रकार न्यास करके गायत्री मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्।
आदित्य हृदय स्तोत्र मंत्र | Aditya Hridaya Stotra Lyrics
॥ अथ श्री आदित्यहृदयम् स्तोत्रम ॥
|| पूर्व पिठिता ||
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
अर्थ ॥1-2॥ – उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे । इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया । यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले ।
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥
अर्थ ॥3-5॥ – सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो ! वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे। इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय’ । यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है । इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।
|| मूल-स्तोत्र ||
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
अर्थ ॥6॥ – भगवान सूर्य जो अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) हैं, जो ये नित्य उदय होने वाले (समुद्यन्), जो देवताओ और असुरों दोनों के द्वारा नमस्कृत हैं। तुम प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) भास्कर का पूजन करो।
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन:।
एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि:॥7॥
अर्थ ॥7॥ – सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं । ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं ।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति:।
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
अर्थ ॥8॥ – ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण आदि को प्रकट करने वाले है।
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु:।
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर:॥9॥
अर्थ ॥9॥ – ये पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रभा (प्रकाश) के पुंज हैं।
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर:॥10॥
अर्थ ॥10॥ – इन्हीं के नाम आदित्य (अदितिपुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्व व्याप्त), खग (आकाश में विचरने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान् (प्रकाशमान), सुर्वणसदृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले) और..
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हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
अर्थ ॥11॥ – हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक), सहस्रार्चि (हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति (सात घोड़ों वाले), मरीचिमान (किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा ((भक्तों का दुःख दूर करने वाले), मार्तण्डक (ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान (किरण धारण करने वाले),
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:।
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन:॥12॥
अर्थ ॥12॥ – हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहरकर (दिनकर), रवि (सबकी स्तुति के पात्र), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले),
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग:।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः॥13॥
अर्थ ॥13॥ – व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार को नष्ट करने वाले), ऋग, यजुः और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विन्ध्यीथीप्लवंगम (आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले),
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव:॥14॥
अर्थ ॥14॥ – आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले), मण्डली (किरणसमूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सबको ताप देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले), सर्वभवोदभव (सबकी उत्पत्ति के कारण),
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन:।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
अर्थ ॥15॥ – नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं । इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है।
|| मन्त्र जप ||
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम:॥16॥
अर्थ ॥16॥ – पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरि अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम:।
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम:॥17॥
अर्थ ॥17॥ – आप जय स्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता है। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य ! आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध है, आपको नमस्कार है।
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम:।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
अर्थ ॥18॥ – हे उग्र (आप भक्तों के लिए भयंकर) हे वीर (शक्ति संपन्न) हे सारंग (शीघ्र गामी) सूर्यदेव आपको नमस्कार है। हे पद्मप्रबोध (कमलों को विकसित करने वाले) हे प्रचंड तेज धारी मार्तण्ड आपको प्रणाम है।
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ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम:॥19॥
अर्थ ॥19॥ – आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम:॥20॥
अर्थ ॥20॥ – आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं। आपका स्वरूप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
अर्थ ॥21॥ – आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु:।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि:॥22॥
अर्थ ॥22॥ – रघुनन्दन ! ये भगवान सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं ।
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित:।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥
अर्थ ॥23॥ – ये सब भूतों में अन्तर्यामीरूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु:॥24॥
अर्थ ॥24॥ – देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं । सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं ।
|| फलश्रुति ||
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
अर्थ ॥25॥ – राघव ! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् ।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अर्थ ॥26॥ – इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra) का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
अर्थ ॥27॥ – महाबाहो (राम) ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्य ऋषि जैसे आये थे, उसी प्रकार चले गये।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥
अर्थ ॥28॥ – उनका (अगस्त्य ऋषि का) उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय (Aditya Hridaya Stotra) को धारण किया..
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
अर्थ ॥29॥ – और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ।
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अर्थ ॥30॥ – फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण:।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
अर्थ ॥31॥ – उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा – ‘रघुनन्दन ! अब जल्दी करो’।
इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदयम मंत्र (Aditya Hridaya Stotra) संपन्न होता है।
॥ आदित्य हृदयम स्तोत्र सम्पूर्ण ॥
आदित्य हृदयम स्तोत्र पाठ से लाभ
आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ जीवन के अनेक कष्टों का एकमात्र निवारण है। इसके नियमित पाठ से मानसिक कष्ट, हृदय रोग, तनाव, शत्रु कष्ट और असफलताओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
इस स्तोत्र में सूर्य देव की निष्ठापूर्वक उपासना करते हुए उनसे विजयी मार्ग पर ले जाने का अनुरोध है। आदित्य हृदय स्तोत्र सभी प्रकार के कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति कराने वाला, सर्व कल्याणकारी, आयु, उर्जा और प्रतिष्ठा बढाने वाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है।
FAQs – आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotram
1. आदित्य हृदय स्तोत्र के रचयिता कौन है?
आदित्य हृदय स्तोत्र वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित मंत्र हैं। इस मंत्र को अगस्त्य मुनि ने श्री राम जी को युद्ध भूमि में सुनाया था
2. आदित्य हृदय स्तोत्र में कितने श्लोक है?
आदित्य हृदय स्तोत्रम में 31 श्लोक है -पूर्व पिठिता और फलश्रुति मिलाकर।
3. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से क्या होता है?
सूर्य की आराधना से व्यक्ति को सूर्य के समान तेज और यश की प्राप्ति होती है। रोग, तनाव, शत्रु और असफलताओं पर विजय प्राप्त के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना सर्वोत्तम माना जाता है।
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