Kanwar Yatra Deoghar – पवित्र कांवर यात्रा गंगा धाम (सुल्तानगंज, बिहार) में उत्तर-वाहिनी गंगा (उत्तर दिशा में बहने वाली गंगा, इसलिए पवित्र) से शुरू हो कर बाबा बैद्यनाथ धाम देवघर में, जो की बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, मे पूर्ण होती है।
इस वर्ष (2024) सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू होगा और इसका समापन 19 अगस्त को होगा।
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कांवर यात्रा | Kanwar Yatra | Kavad Yatra
श्रावण (जुलाई-अगस्त) के महीने के दौरान शिव भक्त कंधे पर कांवर मे पवित्र गंगा जल ले जाते हैं और इसे शिवलिंग पर डालते हैं जिसे जलाभिषेक कहा जाता है। श्रावण मास के दौरान देश के अन्य भागों में भी कांवड़ यात्रा निकाली जाति है, लेकिन बाबा धाम कांवर यात्रा का अपना ही महत्व है।
शिव भक्त सुल्तानगंज में गंगा नदी में स्नान करते हैं और बाबा अजगैबीनाथ मंदिर में पूजा कर पवित्र यात्रा को पूरा करने का संकल्प लेते हैं। वे उत्तर-वाहिनी गंगा से गंगा जल को दो बर्तनों में लेकर एक बहंगी में रखते हैं जिसे कांवर कहा जाता है । इन कांवरों को ले जाने वाले शिव भक्तों को कांवरिया या कांवड़िया कहा जाता है । यात्रा के दौरान, कांवरिया एक-दूसरे को ‘बम जी’ के रूप में सम्मानपूर्वक संबोधित करते हैं या उनके नाम के साथ ‘बम’ जोड़ते हैं और रास्ते में बोल बल-बल बम का जाप करते हैं।
कांवर यात्रा तीन प्रकार की होती है:
- सामान्य कांवरिया – ये कांवरियां अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार प्रतिदिन 20-25 किमी की पैदल यात्रा करते हैं और भोजन, आराम या सोने के लिए अस्थायी सेवा-शिविरों में रुकते हैं। यात्रा को पूरा होने में लगभग 3 से 5 दिन लगते हैं।
- डाक बम – जो तीर्थयात्री किसी शिविर में नहीं रुकते हैं और उन्हें एक ही दिन में यात्रा पूरी करनी होती है, वे डाक बम हैं । डाक बम, जो एक दिन (आमतौर पर 15 से 20 घंटे) के भीतर यात्रा पूरी करते हैं, उन्हें देवघर में शिव मंदिर तक पहुंचने का विशेषाधिकार मिलता है और आम तीर्थयात्रियों की तरह मीलों तक लम्बी कतार में नही लगना पड़ता है।
- दांडी बम (दांडी कंवर यात्रा) – हठ योग के एक रूप में, कुछ भक्त इस दूरी को दंड-बैठक (पूरे शरीर को साष्टांग प्रणाम) द्वारा तय करते हैं और गंतव्य तक पहुंचने में हफ्तों या महीनों का समय लेते हैं। वे भी एक कांवर लेकर चलते हैं, लेकिन एक मील चलते हैं और कंवर को एक स्टैंड पर छोड़ देते हैं फिर वापस चले जाते हैं और दंड-बैठक करके फिर उसी स्थान पर आते हैं और प्रक्रिया को फिर दोहराते हैं।यह एक बहुत ही कठिन यात्रा है।
कई भक्त हैं जो इस कांवर यात्रा को पैदल पूरा करने में शारीरिक रूप से असमर्थ हैं, वे जलाभिषेक करने के लिए अपने वाहन द्वारा सीधे बाबा बैद्यनाथ मंदिर आते हैं।
सुल्तानगंज से देवघर तक कांवर यात्रा मार्ग
शिव भक्त बिहार के सुल्तानगंज (अजगैविनाथ) में गंगा धाम में उत्तर-वाहिनी गंगा से गंगा जल भरकर पैदल अपनी कांवर यात्रा शुरू करते हैं और झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथधाम में यात्रा संपूर्ण करते हैं। सुनतानगंज से देवघर की कुल दूरी करीब 105 किलोमीटर है।
सुल्तानगंज से देवघर तक कांवड़ यात्रा मार्ग में प्रमुख शिविर स्थानों और पड़ावों की सूची नीचे दी गई है जो बिहार और झारखंड के कई जिलों से होकर गुजरती है:
से | तक | दूरी |
---|---|---|
सुल्तानगंज | कामराईस | 6 किमी |
कामराईस | असरगंज | 7 किमी |
असरगंज | तारापुर | 8 किमी |
तारापुर | रामपुर | 7 किमी |
रामपुर | कुमारसार | 8 किमी |
कुमारसार | चंदन नगर | 10 किमी |
चंदन नगर | जलेबिया मोड़ | 8 किमी |
जलेबिया मोड़ | सुइया | 8 किमी |
सुइया | अब्राखिया | 8 किमी |
अब्राखिया | कटोरिया | 8 किमी |
कटोरिया | लक्ष्मण झूला | 8 किमी |
लक्ष्मण झूला | इनारावरण | 8 किमी |
इनारावरण | भुलभुलैया | 3 किमी |
भुलभुलैया | गोरियारी | 5 किमी |
गोरियारी | कलकतिया धर्मशाला | 3 किमी |
कलकतिया धर्मशाला | भूतबांग्ला | 5 किमी |
भूतबांग्ला | दर्शनिया | 1 किमी |
दर्शनिया | बाबा बैद्यनाथ मंदिर | 1 किमी |
कुल दूरी | 105 किमी |
कांवड़ यात्रा के दौरान सेवा शिविरों में चौबीसों घंटे कांवड़ियों को मुफ्त भोजन और दवाएं प्रदान की जाती हैं।रास्ते में कांवरियों की सेवा के लिए सरकार के साथ-साथ निजी संगठन भी उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।
पूरे यात्रा मार्ग में, आपको नियमित अंतराल पर लकड़ी के कई स्टैंड मिल जाएंगे, जहां तीर्थयात्री अपने कांवड़ या गंगा जल के बर्तनों को रख सकते हैं, क्योंकि नियमों के अनुसार उन्हें जमीन पर रखना मना है।
बाबाधाम पहुंचने के बाद, दर्शन के लिए तीर्थयात्रियों की भीड़ के अनुसार लंबी प्रतीक्षा कतार में लग जाते हैं।मंदिर और जिला प्रशासन शीघ्र दर्शनम सुविधा भी प्रदान करते हैं। भक्त बाबाधाम मंदिर में जलाभिषेक पूरा करने के बाद वे बाबा बासुकीनाथ को जलाभिषेक करने के लिए बासुकीनाथ मंदिर जाते हैं, जो देवघर से लगभग 45 किलोमीटर दूर है।
कांवरियों को जलार्पण कराने की व्यवस्था
श्रावणी मेले में बाबाधाम आने वाले कांवरियों को सुलभ जलार्पण कराने के लिए प्रशासन ने तीन तरह की व्यवस्था की है। पहली व्यवस्था के तहत सामान्य कतार लगेगी। इसके लिए बाबा मंदिर से लेकर रूट लाइन में लगने की व्यवस्था की गयी है। सामान्य कतार के माध्यम से पूजा करने वाले कांवरियों को जल का संकल्प कराने के बाद मानसरोवर की ओर से जलसार चिल्ड्रेन पार्क होते हुए कतार के अंतिम छोर तक जाना होगा।
दूसरी व्यवस्था शीघ्र दर्शनम की है, इसमें प्रति व्यक्ति 500 रुपये देना होगा। इस कूपन को लेने वाले भक्तों को प्रशासनिक भवन के रास्ते से 20 से 30 मिनट में जलार्पण की व्यवस्था की गयी है।
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इसके अलावा तीसरा व्यवस्था बाह्य अरघा से जलार्पण की है। यह मंदिर परिसर स्थित निकास द्वार से सटा हुआ है। इसमें पाइपलाइन को बाबा के शिवलिंग तक जोड़ा गया है। यहां पर जलार्पण करने के बाद कांवरियों का जल सीधे बाबा पर अर्पित होगा, जिसे बाबा मंदिर के ठीक ऊपर लगे बड़े स्क्रीन में भक्त देख सकते हैं।
प्रथम कांवरिया कौन थे?
परंपरा के अनुसार, त्रेता युग में कांवर ले जाने की प्रथा शुरू हुई थी और भगवान राम इस यात्रा को शुरू करने वाले पहले भक्त थे। उन्होंने सुल्तानगंज से कांवर में पवित्र गंगा जल लाया था और बाबाधाम में भगवान शिव को जलाभिषेक किया था। यह उल्लेख आनंद रामायण में भी मिलता है।
श्रावण मास में ही कांवर यात्रा क्यों होती है?
पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान, हलाहल विष सहित कई दिव्य चीजें सामने आईं । जैसे ही भगवान शिव ने इसका सेवन किया, पार्वती ने विष को निगलने से रोकने के लिए उनकी गला पकड़ ली, जिससे उनका गला नीला हो गया, इसलिए उनका नाम नीलकंठ पड़ा । फिर भी विष ने शिव के शरीर पर प्रभाव डाला।
विष के प्रभाव को कम करने के लिए शिव को जल चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई। इसलिए सभी ठंडी चीजों जैसे- अर्धचंद्र, गंगा और लिंग पर लगातार टपकता जल के साथ उनका जुड़ाव। ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन श्रावण के महीने में हुआ था, इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा तब से शुरू हुई।
कांवरियों के लिए नियम
कांवर को ले जाने वाले सभी भक्तों को अपनी यात्रा के दौरान नीचे बताए गए नियमों का पालन करना चाहिए।
- शाकाहार
- ब्रह्मचर्य
- सच्चाई
- वाणी और विचार की पवित्रता
- शराब और धूम्रपान से बचें
- तेल, साबुन, जूते और चमड़े की वस्तुओं के प्रयोग से बचें
- कांवर को जमीन पर न रखें
- यात्रा के दौरान श्रद्धा बनाए रखें।
कांवरियों के लिए सावधानियां
- जेबकतरों से सावधान
- यात्रा के दौरान या मंदिर परिसर में कीमती आभूषण (सोना/हीरा आदि) न पहनें और न ही ले जाएं
- चोरी/ झगड़े के मामले में नजदीकी पुलिस स्टेशन से संपर्क करें
- अफवाहों पर विश्वास न करें। फैक्ट चेक करें
- बेवजह भीड़ न लगाएं
- मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश के दौरान कतार में रहे
- अधिकारियों द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें
- अपने आप को शांत रखकर भगदड़ से सुरक्षित रहें।
सुल्तानगंज अजगैविनाथ से देवघर की दूरी
कांवर यात्रा मार्ग और वाहन मार्ग थोड़ा अलग है। नीचे दिए गए Google Map में आप सुल्तानगंज से देवघर की कुल दूरी और यात्रा करने के कुल घंटों का पता लगा सकते हैं।
FAQs- कांवर यात्रा देवघर
1. कांवर यात्रा का क्या महत्व है?
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का शुभ मुहूर्त माना जाता है। इस यात्रा में भाग लेने वाले भगवान शिव के सभी भक्त कांवरिया कहलाते हैं। भक्त गंगा नदी से गंगा जल लाते हैं और शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
2. सुल्तानगंज से बाबा धाम कितना किलोमीटर है
सुल्तानगंज (अजगैविनाथ) से देवघर की दूरी लगभग 105 किलोमीटर है। ट्रेकिंग दूरी थोड़ी कम है।
3. कांवर यात्रा कितने दिनों में पूरी होती है?
आम कांवड़ यात्री इस यात्रा को 3 से 5 दिनों के बीच पूरा करते हैं। डाक बम इस यात्रा को एक दिन (17-20 घंटे) में बिना रुके पूरा करता है। और दांडी यात्री इस यात्रा को कई हफ्तों में पूरा करता है।
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