रहीम दास जी का पूरा नाम अब्दुल रहीम खान-ए-खाना है। उनका जन्म संवत् १६१३ (ई. सन् 1556) में लाहौर में हुआ था। रहीम दास जी एक कवि के साथ-साथ अच्छे सेनापति, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, कलाप्रेमी, साहित्यकार और ज्योतिष भी थे। रहीम दास जी मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम दास जी अपने हिंदी दोहों से काफी मशहूर थे। उनके कुछ लोकप्रिय दोहे यहां प्रस्तूत है।
Rahim Ke Dohe | Rahiman Dhaga Prem Ka
।। 1 ।। रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय
भावार्थ ।। 1 ।। – रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का रिश्ता बहुत नाज़ुक होता है और इसे क्षणिक आवेश में आकर तोड़ना उचित नही होता है। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे जोड़ना कठिन होता है और यदि जुड़ भी जाए तो टूटे हुए धागों (संबंधों) के बीच में गाँठ पड़ जाती है और पहले की तरह सामान्य नही रह जाता है।
।। 2 ।। रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय
भावार्थ ।। 2 ।। – रहीम कहते हैं कि यदि विपत्ति कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही है, क्योंकि विपत्ति में ही पता चल जाता है कि संसार में कौन हमारा हितकारी है अथवा कौन अहितकारी है। इसलिए विपत्ति आए तो दुखी नहीं होना चाहिए।
।। 3 ।। रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून
भावार्थ ।। 3 ।। – इस दोहे में पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है।
रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है उसी तरह विनम्रता के बिना व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं हो सकता। मनुष्य को अपने व्यवहार में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए।
।। 4 ।। जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग
भावार्थ।। 4 ।। – रहीमदास जी कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं, उनको बुरी संगति भी नहीं बिगाड़ पाती। जिस प्रकार ज़हरीले सांप सुगंधित चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।
।। 5 ।। रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार
भावार्थ।। 5 ।। – रहीम जी कहते हैं कि यदि आपके प्रियजन सौ बार भी रूठे जाएँ तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए। जैसे मोती की माला अगर टूट जाए तो उन मोतियों को फेंक नहीं देते, बल्कि उन्हें वापस माला में पिरो लेते हैं।
।। 6 ।। रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि
भावार्थ।। 6 ।। – रहीम जी इस दोहे में कहते है कि हमें कभी भी बड़ी वस्तु की चाहत में छोटी वस्तु को फेंकना नहीं चाहिए, क्योंकि जो काम एक सुई कर सकती है वही काम एक तलवार नहीं कर सकती। अत: हर वस्तु का अपना अलग महत्व है। ठीक इसी प्रकार हमें किसी भी इंसान को छोटा नहीं समझना चाहिए। जीवन में कभी भी किसी की भी जरूरत पड़ सकती है। सभी अच्छा व्यवहार बनाकर रखना चाहिए।
।। 7 ।। रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय
भावार्थ ।। 7 ।। – रहीम जी कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। क्योंकि दूसरे का दुःख कोई बाँट नहीं पायेगा, उल्टे लोग उसका गलत फायदा या उसका मजाक ही उड़ाते हैं।
।। 8 ।। ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै
भावार्थ ।। 8 ।। – रहीम जी कहते हैं कि नीच /ओछे मनुष्यों की सान्निध्य (संगत) का त्याग वैसे ही करना चाहिए जैसे अंगार का। क्योंकि जलता हुआ अंगार अंग को जला देता है और जब वह शीतल पड़ जाता है तो काला होकर कालिख लगा देता है।
।। 9 ।। एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय
भावार्थ ।। 9 ।। – रहीम कहते हैं कि पहले एक काम पूरा करने की ओर ध्यान देना चाहिए। बहुत से काम एक साथ शुरू करने से कोई भी काम ढंग से नहीं हो पता है और वे सब कार्य पूरा भी नही हो पायेगा। वैसे ही जैसे एक ही पेड़ की जड़ को अच्छी तरह सींचा जाए तो ही फल फूल आदि सभी प्राप्त हो जाते हैं।
।। 10 ।। रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत
भावार्थ ।। 10 ।। – रहीम जी कहते हैं कि नीच स्वभाव के लोगों के साथ दोस्ती करने में सावधानी से काम लेना चाहिए। उनके साथ न तो प्रेम ही करना ठीक है और न उनसे बैर करना ही ठीक है। दोनों ही अवस्थाओं में वे अहित ही करते हैं। कुत्ता मनुष्य को काट लेता है तो उसको बहुत कष्ट होता है। वह मनुष्य के शरीर को चाटता है, तब भी छति होने का खतरा बना रहता है। उसका काटना तथा चाटना-दोनों ही मनुष्य के हित के प्रतिकूल होते हैं।
।। 11 ।। पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन
भावार्थ ।। 11 ।। – रहीम जी कहते हैं कि जिस प्रकार वर्षा ऋतू आने पर कोयल मौन हो जाती है और चारों तरफ मेंढक की ही आवाज सुनाई पड़ती है। उसी प्रकार जीवन में कुछ ऐसे अवसर आते हैं जब गुणवान को चुप रहना पड़ता है, उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है।
।। 12।। रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर जब नीके दिन आइहें, बनत न लगिहैं देर
भावार्थ ।। 12।। – रहीम दास जी इस दोहे में कहते हैं कि हमें बुरे वक्त में चुप रहना चाहिए और धैर्य धारण करना चाहिए। क्योंकि जब इंसान का वक्त सही नहीं चलता है तो अच्छे काम भी उल्टे पड़ जाते हैं अच्छा समय आने पर फिर से काम बनते देर नहीं लगता।
।। 13।। रहिमन कुटिल कुठार ज्यों करि डारत द्वै टूक चतुरन को कसकत रहे समय चूक की हूक
भावार्थ ।। 13।। – जैसे एक कुठार ( कुल्हाड़ी ) लकड़ी के दो टुकड़े कर देती है। उसी तरह बुद्धिमान व्यक्ति जब समय चूक जाता है तो उसका पछतावा उसे हमेशा कष्ट देता रहता है। उसकी कसक कुल्हाड़ी बन कर कलेजे के दो टुकड़े कर देती है।
।। 14।। अब रहीम मुसकिल परी गाढे दोउ काम सांचे से तो जग नहीं झूठे मिलै न राम
भावार्थ ।। 14।। – रहीम दास इस दोहे में अपनी मुश्किल बता रहे हैं – सच्चाई से तो दुनियादारी हासिल नही होती हैं और दुनिया में काम चलाना अति कठिन हो जाता है; और झूठ से राम की प्राप्ति भी नहीं होती हैं। तो अब दोनो में किसे छोडा जाए और किसका साथ दिया जाए।
।। 15।। जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं
भावार्थ ।।15।। – रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों को अगर छोटा भी कह दिया जाए तो उनका बड़प्पन घटता नहीं है। जैसे गिरधर (गिरि को धारण करने वाले कृष्ण) को मुरलीधर (मुरली को धारण करने वाले कृष्ण)) भी कहा जाता है, लेकिन कृष्ण की महिमा में कमी नहीं होती है और उनकी महानता पर इसका कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय | Rahiman Dhaga Prem Ka Dohe
( Rahiman Dhaga Prem Ka Mat Todo Chatkaye )
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