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श्री लक्ष्मी सूक्तम हिंदी अर्थ सहित – Laxmi Suktam Path in Hindi /Sanskrit


Laxmi Suktam in Hindi – श्री लक्ष्मी सूक्तम ऋग्वेद में वर्णित एक स्तोत्र है। यह स्तोत्र श्री सूक्त का ​परिशिष्ट माना जाता है। आसान शब्दों में कहें तो यह श्रीसूक्त का ही एक भाग है, जिसमें मां लक्ष्मी के गुणों की व्याख्या बहुत सुंदर शब्दों में की गई है। यहां हम Lakshmi सूक्त को हिंदी अनुवाद के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं।

श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है साथ ही धन, समृद्धि, व्यापार में वृद्धि, ऋण से मुक्ति, आनंद और वैभव प्राप्ति के लिए भी इसका पाठ तथा अनुष्ठान किया जाता है।

श्री लक्ष्मी सूक्तम -Shri Laxmi Suktam in Hindi /Sanskrit

पद्मानने पद्मऊरु पद्माक्षि पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥1॥

अर्थ ॥1॥ – हे लक्ष्मी देवी! आप कमल के समान मुखमण्डल वाली, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली, कमल से आविर्भूत होनेवाली हैं। सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥2॥

अर्थ ॥2॥ – हे देवी! अश्व, गौ, धन आदि देने में आप समर्थ हैं। आप मुझे धन प्रदान करें। हे माता! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण करें, मुझे सभी अभिलषित वस्तुएँ प्रदान करें।

पुत्रपौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥3॥

अर्थ ॥3॥ – हे देवी! आप सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं। आप मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, गौ, बैल, रथ आदि प्रदान करें। आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएँ।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्नुते ॥4॥

अर्थ ॥4॥– हे लक्ष्मी! आप मुझे अग्नि, इन्द्र, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएँ।

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥5॥

अर्थ ॥5॥ – हे वैनतेय पुत्र गरुड़! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने (सोमपान) वाले हैं, मुझे अमृतयुक्त धन प्रदान करें।

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥6॥

अर्थ ॥6॥ – श्री सूक्त का भक्तिपूर्वक जप करनेवाले, पुण्यशाली लोगों को न क्रोध होता है, न ईर्ष्या होती है, न लोभ ग्रसित कर सकता है और न उनकी बुद्धि दूषित ही होती है। वे सत्कर्म की ओर प्रेरित होते हैं।

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥7॥

अर्थ ॥7॥ –हे माँ, मेघों से भरे आकाश में बिजली की तरह अपनी कृपा का प्रकाश बरसाओ। और भेदभाव के सभी बीजों को एक उच्च आध्यात्मिक स्तर पर चढ़ाएं। हे माता, आप ब्रह्मस्वरूप हैं और सभी द्वेषों का नाश करने वाली हैं।

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥8॥

अर्थ ॥8॥ – हे लक्ष्मी देवी! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली, भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करनेवाली, सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ॥9॥

अर्थ ॥9॥ – जो कमल पर अपने सुंदर रूप के साथ, चौड़े कूल्हे और कमल के पत्ते की तरह आँखों के साथ खड़ी है। उसकी गहरी नाभि (चरित्र की गहराई का संकेत) अंदर की ओर मुड़ी हुई है, और उसकी पूर्ण छाती (बहुतायत और करुणा का संकेत) के साथ वह थोड़ी झुकी हुई है; और उसने शुद्ध सफेद वस्त्र पहने हैं।

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥10॥

अर्थ ॥10॥ – जो विभिन्न रत्नों से जड़ित श्रेष्ठ दिव्य हाथियों द्वारा स्वर्ण कलश के जल से स्नान किया जाता है, उसके हाथों में कमल के साथ कौन शाश्वत है; जो सभी शुभ गुणों के साथ संयुक्त है; हे माता, कृपया मेरे घर में निवास करें और इसे अपनी उपस्थिति से मंगलमय बनाएं।

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥11॥

अर्थ ॥11॥ – समुद्र के राजा की बेटी माँ लक्ष्मी को नमस्कार। जो श्री विष्णु के निवास क्षीर सागर (दूधिया महासागर) में निवास करने वाली महान देवी हैं। जो देवों द्वारा उनके सेवकों के साथ सेवा की जाती है, और जो सभी लोकों में एक प्रकाश है जो हर प्रकटीकरण के पीछे अंकुरित होता है।

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥12॥

अर्थ ॥12॥ – जिनकी सुंदर कोमल दृष्टि की कृपा मात्र से भगवान ब्रह्मा, इंद्र और गंगाधर (शिव) महान हो जाते हैं। हे माँ, आप तीनों लोकों में कमल की तरह विशाल परिवार की माँ के रूप में खिलती हैं। आप सभी के द्वारा प्रशंसा की जाती है और आप मुकुंद के प्रिय हैं।

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥13॥

अर्थ ॥13॥ – हे माता, आप विभिन्न रूपो मे – सिद्ध लक्ष्मी, मोक्ष लक्ष्मी, जय लक्ष्मी, सरस्वती श्री लक्ष्मी और वर लक्ष्मी, आप मुझ पर हमेशा कृपा करें।

वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीस्वरीं त्वाम् ॥14॥

अर्थ ॥14॥ – आप कमल पर खड़े होते हैं और आपके चार हाथों से – पहला वर मुद्रा, दूसरा अंगकुशा , तीसरा पाशा और चौथा अभिति मुद्रा – कृपा बरसाते हैं, बाधाओं के दौरान मदद का आश्वासन देते हैं, हमारे बंधनों को तोड़ने और निर्भयता का आश्वासन हैं। मैं आपकी पूजा करता हूं, ब्रह्मांड की देवी, जिनकी तीन आंखों से लाखों नए उगते सूरज (यानी अलग-अलग दुनिया) दिखाई देते हैं।

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ नारायणि नमोऽस्तु ते ॥15॥

अर्थ ॥15॥ – जो सभी शुभ, स्वयं में शुभ, सभी शुभ गुणों से परिपूर्ण, और भक्तों के सभी उद्देश्यों (पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) को पूरा करने वाले हैं। शरण देने वाली और तीन आंखों वाली देवी, हे नारायणी, मैं आपको प्रणाम करता हूं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ हे नारायणी; मैं आपको प्रणाम करता हूँ हे नारायणी।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥16॥

अर्थ ॥16॥ – हे त्रिभुवनेश्वरी! हे कमलनिवासिनी! आप हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। श्वेत, स्वच्छ वस्त्र, चंदन व माला से युक्त हे विष्णुप्रिया देवी! आप सबके मन की जानने वाली हैं। आप मुझ दीन पर कृपा करें।

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥17॥

अर्थ ॥17॥ – भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी, क्षमा की मूर्ति – क्षमास्वरूपिणी, माधवप्रिया, अच्युतवल्लभा, भूदेवी, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूँ।

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥18॥

अर्थ ॥18॥ – हम विष्णु पत्नी महालक्ष्मी को जानते हैं तथा उनका ध्यान करते हैं। वे लक्ष्मीजी सन्मार्ग पर चलने के लिये हमें प्रेरणा प्रदान करें।

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥19॥

अर्थ ॥19॥ – इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति श्री, तेज, आयु, स्वास्थ्य से युक्त होकर शोभायमान रहता है। वह धन-धान्य व पशु धन सम्पन्न, पुत्रवान होकर दीर्घायु होता है।

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥20॥

अर्थ ॥20॥ – ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, क्षुधा, अपमृत्यु, भय, शोक तथा मानसिक ताप आदि – ये सभी मेरी बाधाएँ सदा के लिये नष्ट हो जाएँ।

य एवं वेद ।
ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥21॥

अर्थ ॥21॥ – यह (महालक्ष्मी का सार) वास्तव में वेद (परम ज्ञान) है। हम महान देवी के दिव्य सार को उनका ध्यान करके जान सकते हैं, जो श्री विष्णु की पत्नी हैं। लक्ष्मी के उस दिव्य सार को हमारी आध्यात्मिक चेतना को जगाने दो। ओम शांति शांति शांति।

॥ ऋग्वेद वर्णित श्री लक्ष्मी सूक्त सम्पूर्ण ॥


FAQs – श्री लक्ष्मी सूक्त पाठ – Shri Lakshmi Suktam in Hindi

1. श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ कैसे करें?

इसमें शुद्धता का बहुत महत्व है, स्नान के बाद लक्ष्मी जी के मंदिर में ये पाठ करने उत्तम माना जाता है। देवी लक्ष्मी की षोडशोपचार पूजन कर लक्ष्मी जी के समक्ष घी का दीपक लगाएं, फिर श्री सूक्त पाठ की शुरुआत करें।

2. श्री सूक्त और लक्ष्मी सूक्त में क्या अंतर है?

लक्ष्मी सूक्त को श्री सूक्त का ​परिशिष्ट माना जाता है। आसान शब्दों में कहें तो यह श्रीसूक्त का ही एक भाग है। श्री सूक्तम के 17-37 मन्त्र को श्री लक्ष्मी सूक्त कहते हैं। देवी लक्ष्मी को समर्पित एक भक्तिपूर्ण भजन है जिसे पवित्र हिंदू ग्रंथ ऋग्वेद में महान ऋषियों द्वारा वर्णित किया गया है।

4. लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से क्या होता है?

श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ महालक्ष्मी की प्रसन्नता एवं उनकी कृपा प्राप्त कराने वाला है, साथ ही व्यापार में वृद्धि, ऋण से मुक्ति और धन प्राप्ति के लिए भी इसका पाठ तथा अनुष्ठान किया जाता है।


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